4G इंटरनेट ऐसे चलता है समुद्र में बिछी है केबल what is internet work kaise kaam karta hai hindi language
FaceBook डाटा लीक मामला सामने आने के बाद दुनिया की सबसे बड़ी पॉलिटिकल एनालिस्ट फर्म कैम्ब्रिज एनॉलिटिका पर ताला लटक गया है। एनॉलिटिका ने आम लोगों के डाटा का मिसयूज किया या नहीं, यह तो बाद में ही पता चलेगा लेकिन इस पूरी घटना ने भारत में डाटा सिक्युरिटी को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं
देश के बाहर ज्यादातर कंपनियों के सर्वर भारत की बात करें तो यहां ज्यादातर कंपनियों के सर्वर देश के बाहर हैं। यही कारण है कि भारत इंटरनेट के क्षेत्र में अब भी बड़ा प्लेयर बनने से दूर है। साथ ही भात में डाटा सिक्युरिटी को लेकर भी चिंता बनी हुई है।
इसको देखते हुए सरकार देश की सभी टेलिकॉम कंपनियों को 2022 तक टेलीकॉम और सोशल मीडिया कंपनियों के सर्वर भारत में लगाना जरूरी करने पर विचार कर रही है। सरकार चाहती है कि विदेशी कंपनियां ग्राहकों का डाटा देश से बाहर नहीं भेज पाएं।
बता दे कि चीन में डाटा सेंटर होने के चलते सेना ने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों से एमआई के फोन नहीं यूज करने की सलाह दी है।
कैसे होगा डाटा पर कंट्रोल how does the internet work step by step
देश में ज्यादातर कंपनियों को सर्वर देश से बाहर होने के चलते डाटा सिक्युरिटी पर सरकार के हाथ अब भी बंधे हैं। टेक एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर सर्वर ही देश के बाहर होगा, तो सरकार कानून बनाकर भी क्या कर लेगी। दरअसल सर्वर जिस देश में होगा, वहां का कानून काम करता है। ऐसे में सरकार चाहकर भी डाटा पर कंट्रोल नहीं कर सकती है। फेसबुक के ताजा मामले में ऐसा ही समझा जा सकता है। सरकार ने अभी तक कंपनी को नोटिस तो जारी किया है, लेकिन डाटा सिक्युटी की सुरक्षा पर कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी।
ये हैं प्रमुख सवाल what is internet in hind
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए HCL टेक्नोलॉजी में बतौर डाटा इंजीनियर काम करने विकास खिडवरकर के मुताबिक, फेसबुक हो या जीमेल किसी भी वेसाइट के जरिए हम जो भी डाटा इंटरनेट पर डालते हैं वह दुनिया के किसी न किसी हिस्से में लगे सर्वर में सेव होता है। सीधी भाषा में कहें तो हर डाटा का अपना एक घर होता है। इसी घर से डाटा दुनिया के किसी भी हिस्से के कम्प्यूटर या स्मार्टफोन में पहुंच जाता है। गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के सर्वर रूम अपने आकार के कारण पूरी दुनिया में मशहूर हैं।
डाटा होता क्या है?
विकास के मुताबिक, टेक्स्ट, वीडियो या फोटो के रूप मे आप जो कुछ भी सामग्री इंटरनेट पर अपलोड करते हैं। वहीं डाटा कहलाता है। भले ही कम्प्यूटर में आपको फोटो, वीडियो या फिर लिखित रूप में दिखे, लेकिन वास्तव में सर्वर में यह खास कूट भाषा ( कोड) में होती है।
इंटरनेट पर जो कुछ भी डालते हैं वह आखिर किसी कम्प्यूटर में कैसे पहुंच जाता है?
जैसा कि ऊपर बताया गया कि वास्तव में आप जो कुछ भी अपलोड करते हैं। वह कहीं न कहीं सर्वर रूम में सेव होता है। कोई उस डाटा को सर्च करता है तो वह अपने इसी सर्वरनुमा घर से निकलकर सर्च किए जाने वाले कम्प्यूटर, मोबाइल या लैपटॉप तक पहुंच जाता है। इस सर्वर रूम को आपस में कनेक्ट करने का काम इंटरनेट करता है। दुनिया के किसी हिस्से में बने सर्वर में रखा डाटा इसी इंटरनेट के जरिए ही दुनिया के दूसरे कोने में बैठ कर सर्च करने ही वहां पहुंच जाता है। डाटा के इतनी तेज पहुंचने में इंटरनेट की स्पीड और खास ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी काम करती है।
पीछे का सिस्टम काम कैसे करता है?
इसके पीछे तारों और केबल्स का पूरी दुनिया में फैला जाल काम करता है। दअसल इन केबल्स का जाल ही दुनिया के अलग-अलग हिस्से में बने सर्वर को आपस में जोड़ता है। इन्हीं केबल्स के जरिए ही डाटा एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचता है। आप भाषा में इसे ही इंटरनेट कहा जाता है। भारत के साथ पूरी दुनिया इंटरनेट से जुड़ी हुई है।
इंटरनेट काम कैसे करता है ?
दअसल 1960 के दशक में जब इंटरनेट आया तो यह सैटेलाइट के जरिए काम करता था। हालांकि अब यह इन्हीं केबल्स के जरिए काम करता है। मौजूदा समय में दुनिया का 90 फीसदी इंटरनेट इन केबल्स के जरिए बाकी का 10 फीसदी सैटेलाइट के जरिए चलता है। सैटेलाइज के जरिए इंटरनेट का यूज डिफेंस के लिए किया जाता है। आम तौर पर तो आप इंटरनेट प्रोइडर कंपनी से नेट लेते हैं। इसे आप या तो केबल के जरिए हासिल करते हैं या फिर टावर के जरिए। आप कंपनी को पैसे दते हैं और आपको डाटा मिल जाता है
इंटरनेट कंपनियों के हैं 3 मॉडल
आपके घर तक इंटरनेट पहुंचाने का काम इंटरनेट सेवा से जुड़ी तीन अलग-अलग तरह की कंपनियों करती हैं आगे पढ़े - इंटरनेट के सही लाभ
वास्तव में यही तीनों तरह की कंपनियां ही पूरी दुनिया में इंटरनेट को चलाती हैं। इन्हें TR-1 TR-2 और TR-3 कंपनी कहा जाता है।
भारत में कैसे पहुंचता है इंटरनेट ?
अगर भारत की बात करें तो यहां TR-1 का मेन सर्वर मुंबई में है। यहां टाटा के अलावा एयरटेल और रिलायंस के केबल लैंडिंग स्टेशन हैं। इसके अलावा चेन्नई, कोच्चि, दिल्ली और विशाखपत्तनम में भी केबल लैंडिंग स्टेशन हैं। इन्हीं जगहों से टेलिकॉम कंपनियां टॉवर के जरिए पूरे देश में इंटरनेट प्रोवाइड करती हैं। मान लीजिए आप अपने कम्म्यूटर के जरिए वेसबाइट पर बिजिट करते हैं। अगर उस वेबसाइट का सर्वर भारत से बाहर है तो कमांड सीधे मुंबई स्थित लैंडिंग स्टेशन तक जाएगी। यहां से डाटा वहां पहुंच जाएगा जहां वह सर्वर है। इस तरह डाटा सर्वर से उठकर आपके कम्प्यूटर तक पहुंच जाएगा।
समुद्र के भीतर केबल की होती है निगरानी
TR-1 कंपनी ओर से अपना ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने के बाद इनकी लगातार निगरानी की जाती है। कई बार केबल पानी के जहाज के बीच में आने से फट जाती हैं। इनकी लाइफ अधिकम 25 साल होती है। ऐसे में इनकी मेंटीनेंस का काम लगातार चलता रहता है। कई बार केबल खराब होने के बाद इंटरनेट एकाएक ठप पड़ जाता है। जनवरी 2008 में मिस्र के साथ ऐसा हादसा हुआ था, उस वक्त देश का करीब 70 फीसदी इंटरनेट ठप हो गया था। इसी के बाद केबल्स की मेंटिनेंस पर ध्यान दिया जाने लगा। इसी मेंटिनेंस के एवज में TR-2 कंपनियां TR-1 कंपनियों को पैसा देती हैं। इसे टेलिकॉम कंपनियों का बी टू बी मॉडल भी कहा जाता है। TR-2 और TR-3 कंपनियां ग्राहकों से पैसे लेती हैं। इसे टेलिकॉम कंपनियों का बी टू सी मॉडल कहा जाता है।
देश के बाहर ज्यादातर कंपनियों के सर्वर भारत की बात करें तो यहां ज्यादातर कंपनियों के सर्वर देश के बाहर हैं। यही कारण है कि भारत इंटरनेट के क्षेत्र में अब भी बड़ा प्लेयर बनने से दूर है। साथ ही भात में डाटा सिक्युरिटी को लेकर भी चिंता बनी हुई है।
इसको देखते हुए सरकार देश की सभी टेलिकॉम कंपनियों को 2022 तक टेलीकॉम और सोशल मीडिया कंपनियों के सर्वर भारत में लगाना जरूरी करने पर विचार कर रही है। सरकार चाहती है कि विदेशी कंपनियां ग्राहकों का डाटा देश से बाहर नहीं भेज पाएं।
बता दे कि चीन में डाटा सेंटर होने के चलते सेना ने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों से एमआई के फोन नहीं यूज करने की सलाह दी है।
कैसे होगा डाटा पर कंट्रोल how does the internet work step by step
देश में ज्यादातर कंपनियों को सर्वर देश से बाहर होने के चलते डाटा सिक्युरिटी पर सरकार के हाथ अब भी बंधे हैं। टेक एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर सर्वर ही देश के बाहर होगा, तो सरकार कानून बनाकर भी क्या कर लेगी। दरअसल सर्वर जिस देश में होगा, वहां का कानून काम करता है। ऐसे में सरकार चाहकर भी डाटा पर कंट्रोल नहीं कर सकती है। फेसबुक के ताजा मामले में ऐसा ही समझा जा सकता है। सरकार ने अभी तक कंपनी को नोटिस तो जारी किया है, लेकिन डाटा सिक्युटी की सुरक्षा पर कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी।
ये हैं प्रमुख सवाल what is internet in hind
- वास्तव में डाटा होता क्या है?
- इंटरनेट पर जो कुछ भी डालते हैं वह दुनिया के किसी भी कम्प्यूटर में कैसे पहुंच जाता है?
- पीछे का सिस्टम काम कैसे करता है?
- आम तौर पर जिन्हें सर्वर कहा जाता है वो होते क्या हैं?
- सर्वर कोई भौतिक संचरना है या वर्चअल है?
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए HCL टेक्नोलॉजी में बतौर डाटा इंजीनियर काम करने विकास खिडवरकर के मुताबिक, फेसबुक हो या जीमेल किसी भी वेसाइट के जरिए हम जो भी डाटा इंटरनेट पर डालते हैं वह दुनिया के किसी न किसी हिस्से में लगे सर्वर में सेव होता है। सीधी भाषा में कहें तो हर डाटा का अपना एक घर होता है। इसी घर से डाटा दुनिया के किसी भी हिस्से के कम्प्यूटर या स्मार्टफोन में पहुंच जाता है। गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के सर्वर रूम अपने आकार के कारण पूरी दुनिया में मशहूर हैं।
डाटा होता क्या है?
विकास के मुताबिक, टेक्स्ट, वीडियो या फोटो के रूप मे आप जो कुछ भी सामग्री इंटरनेट पर अपलोड करते हैं। वहीं डाटा कहलाता है। भले ही कम्प्यूटर में आपको फोटो, वीडियो या फिर लिखित रूप में दिखे, लेकिन वास्तव में सर्वर में यह खास कूट भाषा ( कोड) में होती है।
इंटरनेट पर जो कुछ भी डालते हैं वह आखिर किसी कम्प्यूटर में कैसे पहुंच जाता है?
जैसा कि ऊपर बताया गया कि वास्तव में आप जो कुछ भी अपलोड करते हैं। वह कहीं न कहीं सर्वर रूम में सेव होता है। कोई उस डाटा को सर्च करता है तो वह अपने इसी सर्वरनुमा घर से निकलकर सर्च किए जाने वाले कम्प्यूटर, मोबाइल या लैपटॉप तक पहुंच जाता है। इस सर्वर रूम को आपस में कनेक्ट करने का काम इंटरनेट करता है। दुनिया के किसी हिस्से में बने सर्वर में रखा डाटा इसी इंटरनेट के जरिए ही दुनिया के दूसरे कोने में बैठ कर सर्च करने ही वहां पहुंच जाता है। डाटा के इतनी तेज पहुंचने में इंटरनेट की स्पीड और खास ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी काम करती है।
पीछे का सिस्टम काम कैसे करता है?
इसके पीछे तारों और केबल्स का पूरी दुनिया में फैला जाल काम करता है। दअसल इन केबल्स का जाल ही दुनिया के अलग-अलग हिस्से में बने सर्वर को आपस में जोड़ता है। इन्हीं केबल्स के जरिए ही डाटा एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचता है। आप भाषा में इसे ही इंटरनेट कहा जाता है। भारत के साथ पूरी दुनिया इंटरनेट से जुड़ी हुई है।
इंटरनेट काम कैसे करता है ?
दअसल 1960 के दशक में जब इंटरनेट आया तो यह सैटेलाइट के जरिए काम करता था। हालांकि अब यह इन्हीं केबल्स के जरिए काम करता है। मौजूदा समय में दुनिया का 90 फीसदी इंटरनेट इन केबल्स के जरिए बाकी का 10 फीसदी सैटेलाइट के जरिए चलता है। सैटेलाइज के जरिए इंटरनेट का यूज डिफेंस के लिए किया जाता है। आम तौर पर तो आप इंटरनेट प्रोइडर कंपनी से नेट लेते हैं। इसे आप या तो केबल के जरिए हासिल करते हैं या फिर टावर के जरिए। आप कंपनी को पैसे दते हैं और आपको डाटा मिल जाता है
इंटरनेट कंपनियों के हैं 3 मॉडल
आपके घर तक इंटरनेट पहुंचाने का काम इंटरनेट सेवा से जुड़ी तीन अलग-अलग तरह की कंपनियों करती हैं आगे पढ़े - इंटरनेट के सही लाभ
वास्तव में यही तीनों तरह की कंपनियां ही पूरी दुनिया में इंटरनेट को चलाती हैं। इन्हें TR-1 TR-2 और TR-3 कंपनी कहा जाता है।
- TR-3 कंपनी: एक शहर से दूसरे शहर के बीच डाटा को पहुंचाने का काम करती हैं। इसमें इंटरनेट मुहैया कराने वाले छोटे केबल ऑपरेटर से लेकर टेलिकॉम कंपनियां शामिल होती हैं।
- TR-2 कंपनी: एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच डाटा को पहुंचाने का काम करती हैं। एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया और जियो को ऐसे ही ऑपरेटर माना जा सकता है आम तौर पर TR-2 और TR-3 कंपनियों ने एक शहर से दूसरे शहर और एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछा रखी है। काई तरह के सवाल पूछे थे कमैंट्स में जैसे internet data kaise banta hai internet kya hai hindi me internet kya hai in english what is internet in hindi language internet kaha se aata hai internet ka parichay net kaise chalta hai internet kaise banta hai in hindi
- TR-1 कंपनियां: ऐसी कंपनियां होती हैं, जिन्होंने समंदर के भीतर दुनिया भर में केबल बिछा रखी है। इसी के चलते दुनिया के सारे देश इंटरनेट के जरिए आपस में जुड़ गए।
भारत में कैसे पहुंचता है इंटरनेट ?
अगर भारत की बात करें तो यहां TR-1 का मेन सर्वर मुंबई में है। यहां टाटा के अलावा एयरटेल और रिलायंस के केबल लैंडिंग स्टेशन हैं। इसके अलावा चेन्नई, कोच्चि, दिल्ली और विशाखपत्तनम में भी केबल लैंडिंग स्टेशन हैं। इन्हीं जगहों से टेलिकॉम कंपनियां टॉवर के जरिए पूरे देश में इंटरनेट प्रोवाइड करती हैं। मान लीजिए आप अपने कम्म्यूटर के जरिए वेसबाइट पर बिजिट करते हैं। अगर उस वेबसाइट का सर्वर भारत से बाहर है तो कमांड सीधे मुंबई स्थित लैंडिंग स्टेशन तक जाएगी। यहां से डाटा वहां पहुंच जाएगा जहां वह सर्वर है। इस तरह डाटा सर्वर से उठकर आपके कम्प्यूटर तक पहुंच जाएगा।
समुद्र के भीतर केबल की होती है निगरानी
TR-1 कंपनी ओर से अपना ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने के बाद इनकी लगातार निगरानी की जाती है। कई बार केबल पानी के जहाज के बीच में आने से फट जाती हैं। इनकी लाइफ अधिकम 25 साल होती है। ऐसे में इनकी मेंटीनेंस का काम लगातार चलता रहता है। कई बार केबल खराब होने के बाद इंटरनेट एकाएक ठप पड़ जाता है। जनवरी 2008 में मिस्र के साथ ऐसा हादसा हुआ था, उस वक्त देश का करीब 70 फीसदी इंटरनेट ठप हो गया था। इसी के बाद केबल्स की मेंटिनेंस पर ध्यान दिया जाने लगा। इसी मेंटिनेंस के एवज में TR-2 कंपनियां TR-1 कंपनियों को पैसा देती हैं। इसे टेलिकॉम कंपनियों का बी टू बी मॉडल भी कहा जाता है। TR-2 और TR-3 कंपनियां ग्राहकों से पैसे लेती हैं। इसे टेलिकॉम कंपनियों का बी टू सी मॉडल कहा जाता है।