कबीर के 17 बेस्ट दोहे और उनके हिन्दी अर्थ सहित pdf मीठी वाणी kabir ke dohe in hindi with meaning sakhi

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  Sant Kabir Book in Hindi PDF Kabir Ke Dohe pdf Class 10 Kabir Ke Dohe pdf in English Rahim ke Dohe pdf Part 1 माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥

Kabir ke dohe with meaning in hindi wikipedia – इस दोहे के माध्यम से कबीर जी कहते है की जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने के लिए उसे रौदता है ठीक उसी प्रकार जब मनुष्य भी नश्वर हो जाता है

  यही मिट्टी से उसको दफना कर ढक दिया जाता है अर्थात समय हमेसा एक सा नही रहता है और किसी का समय कभी न कभी जरुर आता है इसलिए हमे कभी भी अपने शक्तियों पर घमंड नही करना चाहिए.
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काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । 

पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ 

Kabir ke dohe arth sahit – कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से यह बताना चाहते है की जो हमे कार्य कल करना है उसे आज ही कर ले और जो आज करना है उस कार्य को अभी पूर्ण कर ले, और पता नही कब हमारे शरीर का अंत हो जाए और आज कल के चक्कर में भला इन कार्यो को कब कर पायेगे

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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

हिंदी अर्थ Pdf– कबीर जी कहते है की मै इस संसार में जब बुराई की तलाश करने निकला तो तो मुझे कोई भी बुरा व्यक्ति नही मिला जो कोई अपनी बुराई बताये और फिर जब अपने मन में झाककर देखा तो पाया की मुझसे बुरा तो कोई है ही नही

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

हिंदी अर्थ – कबीरदास जी हमेसा कहते है जिस प्रकार बिना पानी और साबुन के हमारे गंदे कपड़ो की मैल नही निकलता है और इनके होने से हमारे कपड़े स्वच्छ हो जाते है ठीक उसी प्रकार हमे निंदा करने वाले व्यक्तियों को हमेसा अपने पास रखना चाहिए वे वही लोग होते है जो हमारी सारी कमियों को बताते है जिनसे सीख लेते हुए हम अपनी कमियों को दूर कर सकते है

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर।

हिंदी अर्थ – कबीर जी कहते है की बड़ा आदमी बन जाने से कुछ भी बड़ा नही हो जाता है कर्म भी बड़े होने चाहिए जैसे एक खजूर का पेड़ चाहे कितना भी बड़ा क्यू नही हो जाता है लेकिन न तो उस पेड़ की छाया लोगो को मिलती है और न ही लोगो के उसके फल खाने को आसानी से मिल पाते है तो भला ऐसे पेड़ या लोगो के होने का क्या लाभ.

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

हिंदी अर्थ – Kabir Das Ji कहते है किसी भी चीज की अति यानि अधिकता होना भी नुकसानदायक होता है जिस प्रकार हमे लोगो के बीच न तो बहुत बोलना ही चाहिए और न ही एकदम चुपचाप रहना चाहिये ठीक उसी प्रकार यदि अधिक बारिश हो जाये तो भी नुकसान और अत्यधिक कडवी धुप हो जाये तो भी नुकसान. इसलिए हमे कोई भी कार्य सोच समझकर करना चाहिए.

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

हिंदी अर्थ – अगर कुछ अपने जीवन में पाना है तो राम यानी ईश्वर की भक्ति कर लेना चाहिए क्यूकी ईश्वर की भक्ति पाने के लिए हमे कुछ नही चुकाना पड़ता है और यदि हम ऐसा नही कर सकते है तो हमारा जब शरीर साथ छोड़ देंगा तो हमे पछताने के सिवाय कुछ नही प्राप्त होगा

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । 
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

हिंदी अर्थ – जब ईश्वर और दोनों एक साथ मिलते है तो इन्सान भ्रम में पद जाता है की पहले वह किसका पैर छुए तो इस अवस्था में ईश्वर स्वय बोल देते है ईश्वर को पाने के लिए गुरु ही रास्ता बताते है इसलिए गुरु का पैर सर्वप्रथम छु लेना चाहिए

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद । 
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

हिंदी अर्थ – जब इन्सान के उपर दुःख पड़ता है तो वह तुरंत दुखो से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर को याद करता है जबकि जब उसके सुख के दिन होते है तो ईश्वर को भूलकर अपने में व्यस्त हो जाता है तो भला ऐसे लोग जब ईश्वर को सुख में याद नही करना चाहते है तो भला दुःख के क्षण में ईश्वर हमारी फरियाद क्यों सुनेगे अर्थात सुख हो या दुःख हो हमे कभी भी ईश्वर को नही भूलना चाहिए

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । 
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

हिंदी अर्थ – कबीरदास जी कहते है की हे ईश्वर हमे इतना दीजिये की जिससे मेरे परिवार के सभी सदस्यों का पेट भर जाय और मै भी भूखा न रहू और जो मेरे द्वार पर आये वो भी कभी भूखा न जाय अर्थात हमे उतना ही दीजिये जितने से हमारी जरूरते पूरा हो जाए और अधिक पाकर भी क्या लाभ जब वो किसी के काम ही न आये

कबीरा  गरब  ना  कीजिये , कभू  ना  हासिये  कोय  |
अजहू  नाव समुद्र  में, ना  जाने  का होए  ||

हिंदी अर्थ – कबीरदास जी कहते है की कभी भी हमे अपने उपर घमंड नही करना चाहिए और न ही कभी दुसरो के ऊपर हसना ही चाहिए क्यू इस विशाल समुन्द्र रूपी संसार में हम हम इन्सान रूपी नाव के साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है

कुटिल  बचन  सबसे  बुरा , जासे  हॉट  न  हार  |
साधू  बचन  जल  रूप  है , बरसे  अमृत  धार  ||

हिंदी अर्थ – बुरा बर्ताव और बुरी बाते सबसे बुरी चीज होती है जिससे कभी भी किसी का भला नही हुआ है जबकि मीठी वाणी और मीठे बोल हमेसा अमृत के समान होते है जिनसे हमेसा लोगो के फायदे ही होते है इसलिए लोगो को हमेसा मीठी वाणी बोलना चाहिए

कबीरा  लोहा  एक  है , गढ़ने  में  है  फेर  |
ताहि  का  बख्तर  बने , ताहि  की  शमशेर  ||

हिंदी अर्थ – कबीर जी कहते है की लोहा तो एक ही है चाहे इस लोहे से आप तलवार बना लो जो हमेसा दुसरो को नष्ट करने के काम ही आती है और चाहे तो इसी लोहे से सुई बना सकते है जो हमेसा फटे हुए कपड़े को सिलने अर्थात इज्जत को ढकने के लिए काम आता है अर्थात आपको क्या बनना है ये आप खुद तय कर सकते है

कामी लज्जा न करे मन माहे अहिलाद,
नीद न मांगे सांथरा, और भूख न मांगे स्वाद.

हिंदी अर्थ – दुष्ट व्यक्ति कभी भी गलत कार्यो को करते हुए शर्मिंदा नही होता है और मन ही मन ऐसे कार्यो को करते हुए खुश भी होता है ठीक उसी प्रकार नीद कभी भी बिस्तर की मांग नही करता है और भूखे पेट कभी भी स्वादिष्ट भोजन नही मांगता है उसे जो मिल जाए वही अच्छा होता है

पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

हिंदी अर्थ – कबीर जी कहते है की बड़ी बड़ी किताबे पढ़कर न जाने कितने लोग इस दुनिया से चले गये लेकिन कोई भी वास्तविक ज्ञान प्राप्त नही कर सका जबकि जो लोग प्यार और प्रेम की भाषा को अच्छी तरह समझ जाता है वही व्यक्ति दुनिया का सबसे ज्ञानी व्यक्ति होता है

जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

हिंदी अर्थ – कभी भी ज्ञानी और विद्वान व्यक्ति की हमे जाति नही पूछना चाहिए अगर कुछ पूछना ही तो उनके ज्ञान के बारे में जान लेना चाहिए ठीक उसी प्रकार म्यान की कभी कीमत नही पूछी जाती है क्यूकी असली कीमत तो तलवार की ही होती है न की तलवार को रखने वाली म्यान की.

साच बराबर तप नही, झूठ बराबर पाप,
जाके हृदय में साच है ताके हृदय हरी आप,

kabir ke dohe in hindi mp3 free download हिंदी अर्थ – इस संसार में सत्य के राह पर चलने के बराबर कोई तपस्या नही है और झूठ बोलना जैसा कोई पाप ही नही है और जो सत्य की राह चलता है उसके हृदय में ईश्वर स्वय निवास करते है

ऊचे कुल क्या जनमिया, जे करनी ऊँच न होय
सोवन कलश सुरे भरया, साधू निदया सोय.

कोई भी व्यक्ति बड़े खानदान या कुल में जन्म लेने से बड़ा नही हो जाता है उसके कर्म भी बड़े होने चाहिए ठीक उसी प्रकार यदि सोने के बर्तन में शराब भर डी जाये तो लोग हमेसा उस सोने के बर्तन की ही लोग निंदा करते है और सोने के बर्तन में रख देने शराब कभी अमृत भी नही होता है


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