मरने के बाद क्या होता है देखे Maut ke baad kya hota hai what happens days before death



Marne ke baad insaan kahan jata hai - मृत्यु का पूर्वाभास इंसान को हो जाता हे अपने सोचा होगा जैसे मरने के बाद आत्मा कहां रहती है मरने के बाद आत्मा कब तक भटकती है सोने के बाद आत्मा कहां जाती है मृत्यु के बाद का अनुभव मृत्यु के 47 दिन बाद मरने के बाद की ज़िन्दगी क्या मृत्यु के बाद अपने प्रियजन से बात हो सकती है यही कारण है कि आदमी मर जाता है उसी तरह से यह भी कहा जाता है कि कई योनियों में जन्मों और मौत के चक्र को पूरा करने के बाद हमें यह मानव जीवन मिलता है

what happens after death hindu in hindi

मानव जीवन हमें मौज मस्ती के लिए नहीं मिला बल्कि इसका सदुपयोग जीव आत्मा कल्‍याण हेतू कुछ कर्म करने चाहिए ऐसा माना जाता हे कि भगवान स्‍वयं प्रत्‍यक्ष रूप से मानव को दर्शन नहीं दे सकते हैं और उनको समझा नहीं सकते हैं इसलिए समय समय पर उन्‍हें भगवान का रूप लेना पड़ता है इस प्रकार, समझा जा सकता है कि मानव जीवन कितना महत्‍वपूर्ण होता है।

Mrityu ke baad kya hota hai in hindi, what happens after death


प्राकृतिक मृत्‍यु बनाम आत्‍महत्‍या- जिन व्‍यक्तियों की मृत्‍यु प्राकृतिक कारणों से होती है उनकी आत्‍मा भटकती नहीं और नियमानुसार उनके जीवन के 7 चरण पूरे हो चुके होते हैं। लेकिन जिन लोगों की मृत्‍यु, आत्‍महत्‍या करने के कारण होती है वो चक्र को पूरा न कर पाने के कारण अधर में रह जाते हैं।

zindagi marne ke baad aatma kahan jaati hai हर व्‍यक्ति प्रकृति के नियमों के अनुसार ही जन्‍म लेता है और उसी के अनुसार उसकी मृत्‍यु होनी चाहिए। बस सभी के जाने का तरीका अलग होता है कोई बीमारी से चला जाता है और कोई वृद्धावस्‍था के बाद। लेकिन आत्‍महत्‍या करने से व्‍यक्ति प्रकृति के खिलाफ कदम उठाता है ऐसे में उसकी आत्‍मा की मुक्ति संभव नहीं हो पाती है।

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पुराणों में खासकर गरुड़ पुराण में नरक की जो व्यख्या है -marne ke baad kya hota hai in islam

इसके दूसरे अध्याय से है- गरुड़जी ने कहा-हे केशव। यमलोक का मार्ग किस प्रकार दुखदायी होता है। पापीलोग वहां किस प्रकार जाते हैं मुझे बताइये। श्रीभगवान बोले-हे गरुड़। महान दुख प्रदान करने वाले यममार्ग के विषय में मैं तुमसे कहता हूं, मेरा भक्त होनेपर भी तुम उसे सुनकर कांप उठोगे।

यममार्ग में वृक्ष की छाया नहीं है, अन्न आदि भी नहीं है, वहां कहीं जल भी नहीं है, वहां प्रलयकाल की भांति बारह सूर्य तपते हैं। उस मार्ग से जाता हुआ पापी कभी बर्फीली हवा से पीडि़त होता है तो कभी कांटे चुभते हैं. कभी महाविषधर सर्पों द्वारा डसा जाता है, कहीं आग से जलाया जाता है, कहीं सिंहों, व्याघ्रों और भयंकर कुत्तों द्वारा खाया जाता है, कहीं बिच्छुओं द्वारा डसा जाता है। इसके बाद वह भयंकर असिपत्रवन नामक नरक में पहुंचता है जो दो हजार योजन के विस्तार वाला है। यह वन कौओं, उल्लुओं, गीधों, सरघों तथा डॉंसों से व्याप्त है। उसमें चारों ओर दावाग्नी है, वह जीव कहीं अंधे कुएं में गिरता है, कहीं पर्वत से गिरता है,
कहीं छुरे की धार पर चलता है, कहीं कीलों के ऊपर चलता है, कहीं घने अन्धकार में गिरता है। कहीं उग्र जल में गिरता है, कहीं जोंकों से भरे हुए कीचड़ में गिरता है। कहीं तपी हुई बालुका से व्यापत और धधकते ताम्रमय मार्ग, कहीं अंगार राशि, कहीं अत्याधिक धुएं से भरे मार्ग पर उसे चलना पड़ता है। कहीं अंगार वृष्टि, कहीं बिजली गिरने, शिलावृष्टि, कहीं रक्तकी , कही शस्त्र की और कहीं गर्म जल की वृष्टि होती है।

कहीं खारे कीचड़ की वृष्टि होती है। कहीं मवाद, रक्त तथा विष्ठा से भरे हुए तलाव हैं। यम मार्ग के बीचोबीच अत्यन्त उग्र और घोर वैतरणी नदी बहती है। वह देखनेपर दुखदायनी है। उसकी आवाज भय पैदा करने वाली है। वह सौ योजन चौड़ी और पीब तथा रक्त से भरी है।

हड्डियों के समूह से उसके तट बने हैं। यह विशाल घड़ियालों से भरी है। हे गरुड़ आए पापी को देखकर वह नदी ज्वाला और धूम से भरकर कड़ाह में खौलते घी की तरह हो जाती है। यह नदी सूई के समान मुख वाले भयानक कीड़ों से भरी है।

वज्र के समान चोंच वाले बडे़-बड़े गीध हैं इसके प्रवाह में गिरे पापी हे भाई, हा पुत्र, हा तात। कहते हुए विलाप करते हैं। भूख-प्यास से व्याकुल हो पापी रक्त का पान करते हैं। बहुत से बिच्छु तथा काले सांपों से व्याप्त उस नदी के बीच में गिरे हुए पापियों की रक्षा करनेवाला कोई नहीं है। उसके सैंकड़ों, हजारों भंवरों में पड़कर पापी पाताल में चले जते हैं, क्षणभर में ही ऊपर चले आते हैं।

कुछ पापी पाश में बंधे होते हैं। कुछ अंकुश में फंसा कर खींचे जाते हैं और कुछ कोओं द्वारा खींचे जाते हैं। वे पापी गरदन हाथ पैरों में जंजीरों से बंधे होते हैं उनकी पीठ पर लोहे के भार होते हैं। अत्यंत घोर यमदूतों द्वारा मुगदरों से पीटे जाते हुए रक्त वमन करते हैं तथा वमन कीए रक्त को पीते हैं।

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इस प्रकार सत्रह दिन तक वायु वेग से चलते हुए अठाहरवें दिन वह प्रेत सौम्यपुर में जाता है। गरुड़ पुराण का यह वर्णन जाहिर है कि मनुष्यों को धर्माचरण और पाप से दूर रखने के लिए ही रचा गया होगा।


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